जानिए भारत का हजारो साल पुराना इतिहास | History of India
भारत के इतिहास को घटनाक्रम और कलाक्रम के अनुसार पाषाण युग, वैदिक काल, मध्ययुगीन भारत और प्रारंभिक आधुनिक भारत में बांटा गया है जो कि इस प्रकार है
जानिए भारत का पुराना इतिहास – History of India
पूर्व ऐतिहासिक काल / प्रागैतिहासिक काल (3300 ईसा पूर्व तक)
भारत के इतिहास को कितने भागों में बांटा गया है?
भारत का इतिहास विस्तृत एवं सुवर्णित रहा है,| भारतीय इतिहास को व्यवस्थित रूप से जानने के लिए तीन भागों में बांटा गया है|
- प्रागैतिहासिक काल,
- मध्यकाल,
- आधुनिक काल.|
1-प्रागैतिहासिक काल मानव की उत्पत्ति एवं उनके विकास से सम्बंधित है|
2-मध्यकालीन भारत में मध्यकाल का आठवीं शताब्दी से माना है|
3-आधुनिक काल का प्रारम्भ अंग्रेजों के आगमन एवं उनके शासन से माना जाता है| जब भारत में पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव होने लगा था |
हमारे भारतीय इतिहास की जानकारी हमे मुख्यतः 4 स्रोतों से प्राप्त होती है :-
- धर्म ग्रन्थ
- ऐतिहासिक ग्रंथ
- विदेशियों का विवरण
- पुरातत्व संबंधी साक्ष्य
प्रागैतिहासिक काल :- प्रागैतिहासिक काल को पढ़ने की दृष्टी से तीन भागों में बाँटा गया है।
1) प्रागैतिहासिक काल :-
प्रागैतिहासिक काल किसे कहते है? जिस काल में मनुष्य द्वारा घटनाओं का कोई भी लिखित में विवरण नहीं मिलता है उसे प्रागैतिहासिक काल कहते है। इसमे पुरातात्विक साक्ष्य मिलते है। परंतु लिखित साक्ष्य नहीं मिलते।
2) आद्य ऐतिहासिक काल :-
आद्य ऐतिहासिक काल उस काल को कहते है, जिसमे लिखित में लेख भी मिले है लेकिन उन लेखों को पढ़ा नहीं जा सका। हड़प्पा काल को आद्य ऐतिहासिक काल में ही रखा गया है।
3) ऐतिहासिक काल या इतिहास :-
उस काल को कहा जाता है जिसमे लिखित साक्ष्य मिले भी है और उन्हें पढ़ा भी जा सका। अर्थात इस काल में पुरातात्विक साक्ष्य एवं लिखित साक्ष्य दोनों मिले और पढें भी गए। उदा. अशोक के अभिलेख ।
प्रागैतिहासिक काल का क्या अर्थ है:-
इसमे लिखित साक्ष्य नहीं मिले, केवल पुरातात्विक साक्ष्य ही मिले है। इन साक्ष्यों में कई ऐसी चीजों के साक्ष्य या चिन्ह मिले जैसे – पत्थरों के प्राचीन औजार, जिन स्थानों पर मानव रहते थे उनके चिन्ह, पुरानी गुफाओं की कला (जैसे भीमबेटका की गुफाएं , मध्यप्रदेश में , इसमे गुफा चित्रकारी का प्राचीन इतिहास मिलता है। ) इस काल में मानव छोटे कबीलो या समूह में रहते थे और जंगली जानवरों से जूझते हुए जीवन बिताते थे। उस समय में ऐसे कई जानवर थे जो आज आधुनिक समय में विलुप्त हो गए है
प्रागैतिहासिक काल को तीन युगों में बांटा गया है |
- पाषाण युग
- कांस्य युग (तांबा एवं काँसा)
- लौह युग
पाषाण युग :-
- पाषाण युग की शुरुआत 25 से 20 लाख साल पहले मानी जाती है, ऐसा माना जाता है कि इस युग में ही सबसे पहले मानव जाति की उपस्थिति का पता चला था।
- पाषाण युग में मानव जीवन के पत्थरों पर आश्रित होने के प्रमाण भी मिले थे। उस दौरान पत्थरों की मद्द से ही मानव द्धारा तमाम तरीके के हथियार भी खोजे गए थे, पाषाण काल को भी तीन प्रमुख चरणों में बांटा गया है-
- पुरापाषाण काल – मानव जीवन की शुरुआत, हाथ से बने हथियारों का उपयोग।
- मध्यपाषाण काल – अग्नि का अविष्कार
- नवपाषाण काल – खेती में इस्तेमाल होने वाले औजार, मिट्टी के बर्तन आदि
पाषाण युग को निम्न भागों में बाँटा गया
- पुरा पाषाण युग
- मध्य पाषाण युग
- नव पाषाण युग
- पुरा पाषाण युग
पुरा पाषाण युग में मनुष्य के जीवन का मुख्य आधार आखेट या शिकार था। पशु पालन का ज्ञान नहीं था। आग का अविष्कार हुआ पर उपयोग करने कअ ज्ञान नहीं था।
औजार
- अधिकांश औजार स्फटिक (पत्थर) के बने थे।
- सन् 1863 ई० में रॉबर्ट ब्रुस फुट वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पुरापाषाण कालीन औजारों की खोज की थी।
- प्रथम भारतीय पुरापाषाण कलाकृति, पल्लावरम नामक स्थान से प्राप्त हुई थी।
मध्य पाषाण युग
- इस काल में पशुपालन की शुरुआत हो गई थी।
- मध्य पाषाण काल में औजार मैक्रोलिथ अर्थात सूक्ष्म पाषाण/पत्थर के बनाये जाते थे।
- मृदभांड के प्राचीनतम साक्ष्य भी मिले है। (मिट्टी का सुराहीदार बर्तन) (इलाहाबाद, उ.प्र)
नव पाषाण युग
- नव पाषाण युग में पहिये का अविष्कार हुआ था।
- मनुष्यों में स्थाई निवास की शुरुआत हो गई थी।
- कृषि/खेती की शुरुआत भी नवपाषाण युग में हो गयी थी।
- कृषि में सबसे पहली/प्राचीन फसल गेंहू (पहला खाद्यान्न) एवं जौ की थी।
- कृषि का सबसे पहला अन्न के उत्पादन करने का स्थान मेहरगढ़ (पश्चिमी बलूचिस्तान में स्थित है) पाया गया था।
- आग के उपयोग की जानकारी हो गई थी।
- पशुपालन की शुरुआत हो गयी थी। सबसे पहले कुत्ते को पालतू जानवर बनाया गया था।
- पहला औजार कुल्हाड़ी बनाया गया था जो अतिरमपक्कम स्थान से प्राप्त हुआ है।
कांस्य युगः (3300 ईसापूर्व– 1500 ईसापूर्व तक)
- करीब 3000 साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप में कांस्य युग की शुरुआत मानी जाती है। सिंधु घाटी की सभ्यता कांस्य युग की सभ्यता थी। इसके अलावा कांस्य युग में मनुष्य तांबे और उसकी रांगे के साथ मिश्रित धातु कास्य का इस्तेमाल करते थे।
- कांस्य युग में मनुष्य ने न सिर्फ धातु विज्ञान एवं हस्तशिल्प में कई नई तकनीक विकसित की, बल्कि इस युग में ही तांबा, पीतल, सीसा और टिन आदि का उत्पादन किया गया।
- कांस्य युग में ही दुनिया भर में पौराणिक सभ्याओं का भी विकास हुआ एवं लोगों ने इस युग में ही शहरी सभ्यताओं में रहने की शुरुआत कर दी थी। कांस्य युग की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि इस युग के दौरान सभी पौराणिक सभ्याओं को लिपि का ज्ञान हो गया था, जो कि इतिहास की उस समय से जुड़ी जानकारी को जुटाने में मद्द करती हैं।
- इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि कांस्य युग में सिंधु घाटी की सभ्यता के साथ मिस्त्र की प्राचीन सभ्यताएं, मेसोपोटामिया की सुमेरियन एवं भारत की मोहनजोदड़ो और हड़प्पा आदि की भी खोज की गई थी।
ताम्र पाषाण युग (तांबा या काँसा )
- ताम्र पाषाण युग को नव पाषाण के बाद का समय माना जाता है। यह सभ्यता 5000 ई पूर्व की थी।
- ताम्र पाषाण युग तांबे और पत्थर का मिश्रित युग था। अर्थात इस समय तक लोग तांबे से परिचित हो चुके थे। और पत्थर के साथ तांबे का उपयोग करने लगे थे। इसे कांस्य युग का एक भाग कहा जा सकता है।
- मनुष्य द्वारा उपयोग की गई सर्वप्रथम धातु तांबा ही थी ।
- ताम्र पाषाण युग से सबन्धित सबसे अधिक शोध् पं. महाराष्ट्र में हुए है। इसमे कुछ स्थान दैमाबाद, जोरवे , चन्दौली, ईनामगांव प्राप्त हुएहैं। इन्हे जोरवे संस्कृति में रखा गया।
लौह युग
लौह युग ताम्र पाषाण युग के बाद आने वाला युग है। अर्थात अब मानव पत्थर के औजारो का उपयोग फिर तांबे का उपयोग और इसके बाद लौहे का उपयोग भी करने लगा था। इस युग में लौहे के साथ अन्य ठोस धातुओं की खोज भी की गयी एवं उसका उपयोग भी सीख लिया था।
वैदिक काल
- 1500 ईसापूर्व से 600 ईसापूर्व तक के समय को वैदिक संस्कृति काल और आर्यों का काल माना जाता है। इसे ऋगवैदिक काल (1500 ईसापूर्व से 1000 ईसापूर्व तक) एवं उत्तर वैदिक काल (1000 से 600 ईसा पूर्व तक) में विभाजित किया गया है। ऋगवैदिक काल की जानकारी महान धर्म ग्रंथ- ऋग्वेद से मिलती है, जबकि उत्तर वैदिक काल की जानकारी शामवेद, यजुर्वेद एवं अर्थर्ववेद के साथ ब्राह्मण, उपनिषद, वेदांग एवं आरण्यक जैसे महान धार्मिक ग्रंथों से प्राप्त होती है।
- वैदिक काल की शुरुआत में करीब 1500 ईसा पूर्व के आस-पास यहां आर्यों का निवास था। इस दौरान वे युद्ध के लिए रथ, घोड़े आदि का इस्तेमाल, अग्न्नि पूजा, बलि देना, मृतकों का दाह संस्कार करने समेत कई मजबूत सांस्कृतिक परंपरा लेकर आए थे। इसके साथ ही इस काल में शिल्प, पशुपालन एवं कृषि आदि मुख्य व्यवसाय थे। इसके साथ ही वैदिक काल में बोलचाल के लिए संस्कृत भाषा का इस्तेमाल किया जाता था, वहीं इसका प्रमाण कई प्राचीन धार्मिक ग्रंथों और वेदों में भी मिलता है।
- वैदिक काल के दौरान ही हिंदू धर्म और अन्य सांस्कृतिक आयामों की नींव रखी गई। इस दौरान आर्यों ने विशेष तौर पर पूरे उत्तर भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में वैदिक सभ्यता का प्रचार-प्रसार किया।
दूसरा नगरीकरण महाजनपद युग (600 ईसापूर्व से 200 ईसापूर्व तक)
कांस्य युग की सबसे विकसित एवं भारत की सबसे प्राचीनतम सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता के बाद इस काल में जमकर शहरीकरण हुआ। यह काल राज्यों के निर्माण का काल माना जाता था, इस काल में कोसाला, अंग, चेडी समेत 16 महाजनपदों की स्थापना हुई, 10 गणराज्य अस्तित्व में आए और मगध सम्राज्य ( 640 ईसापूर्व से 330 ईसापूर्व तक) का उदय हुआ।
इसके साथ ही इस दौरान राजतंत्र और गणतंत्र दो तरह की राजनैतिक व्यवस्था मुख्य रुप में उभरी। इस काल में उत्तर मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य और महान राजा अशोक ने इस सम्राज्य का काफी विस्तार किया।
इस काल में गुप्त वंश के शासन के दौरान कला, साहित्य, विज्ञान, गणित, खगोल शास्त्र, धर्म,दर्शन, प्रौद्योगिकी आदि का भी विकास हुआ। यह भारत का ‘’स्वर्णिम काल’’ कहलाया। इस काल के दौरान ही जाति व्यवस्था काफी सख्त हुई एवं भारत में गौतम बुद्ध और महावीर जैन का आगमन हुआ।
प्राचीन भारत का इतिहास कब से कब तक है?
सिंधु घाटी सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता
- सिंधु घाटी सभ्यता, सबसे प्राचीन एवं दुनिया भर की नदी घाटी सभ्यताओं में एक है, इसकी शुरुआत करीब 3300 ईसा पूर्व से 1700 ईसा पूर्व तक मानी जाती है।
- यह एक विकसित सभ्यता थी। हड़प्पा शहर उस युग की सबसे बेहतरीन और उत्कृष्ट कलाकृतियों का एक शानदार नमूना था। इसे हड़प्पा सभ्यता और सिन्धु-सरस्वती सभ्यता के नाम जाना जाता हैं।
- भारत की इस सबसे प्राचीन सभ्यता का विकास सिन्धु नदी और घघ्घर/हकडा (प्राचीन सरस्वती) नदी के किनारे हुआ था।
- वहीं भारतीय पुरात्तविक विभाग द्धारा सिंधु घाटी की खुदाई में यह पता लगाया गया कि, मोहनजोदाड़ो, कालीबंगा, लोथल, राखिगढ़ी धोलावीरा, और हड़प्पा इस सभ्याता के मुख्य केंद्र थे।
- आपको बता दें कि इस प्राचीन सभ्यता में व्यापारिक शहर के तौर पर इन शहरों को बसाया गया था। इस सभ्यता में नगरों का समुचित विकास होने के कारण इसे ‘नगरीकरण’ सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।
- खुदाई से प्राप्त अवशेषों के आधार पर बाद में इस सभ्यता का नाम “हड़प्पा सभ्यता’’ कर दिया गया था।
- इस तरह यह एक समृद्ध एवं संपन्न सभ्यता थी, जिसमें लोग योजनाबद्ध तरीके से कस्बों में रहते थे, जिनके घर पक्की ईंटों के बने होते थे।
- इतिहासकारों के मुताबिक कांस्य युग की इस अत्याधिक विकसित सभ्यता में लोगों को अनाज, गेहूं आदि की पैदावार करने की कला भी ज्ञात थी।
- इसके अलावा उस दौरान लोग सब्जियों, फल, मांस, अंडे और सुअर आदि का भी सेवन करते थे एवं ऊनी और सूती वस्त्र पहनते थे। वहीं बाद में कुछ विनाशकारी प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, भूकंप, अकाल, महामारी, आदि के कारण इस सभ्यता का अंत हो गया।
- कास्यं युग की इस प्रसिद्ध सिन्धु घाटी सभ्यता के करीब अभी तक 1,400 केंद्र खोंजे जा चुके हैं जिनमें से 925 केंद्र भारत में ही पाए गए हैं।
मगध साम्राज्य
- करीब 640 ईसापूर्व से 320 ईसापूर्व तक भारत में मग्ध सम्राज्य का शासन चला। इस दौरान ही हिन्दू धर्म के दो प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत और रामायण की भी रचना की गई।
- मगध सम्राज्य पर 544 ईसापूर्व से करीब 322 ईसापूर्व तक हर्यंका राजवंश, शिशुनाग राजवंश और नंदा राजवंश ने शासन किया।
- हर्यंका राजवंश (544 ईसा पूर्व से 412 ईसा पूर्व तक)
- हर्यंका राजवंश के शासनकाल के दौरान मगध के शासक बिंबिसार, उसके पुत्र अजातशत्रु और उदयीन राजा ने शासन किया।
- शिशुनाग राजवंश (544 ईसा पूर्व से 412 ईसा पूर्व तक)
- शिशुनाग के शासनकाल के समय अवन्ती राज्य में विजय प्राप्त कर ली गई।
- नंदा राजवंश (344 ईसापूर्व से 322 ईसा पूर्व तक)
- नंदा राजवंश के संस्थापक महापद्दा को पहले सम्राज्य निर्माता के तौर पर जाना गया था। वहीं नंदा राजवंश के दौरान ही मकदूनियां और ग्रीक के शासक सिकंदर(अलेक्जेंडर द ग्रेट) ने भारत पर आक्रमण किया था।
- वहीं इसके बाद नंदा राजवंश के अंतिम शासक राजा धाना नन्द को चन्द्रगुप्त मौर्य ने पराजित किया और फिर मगध के नए शासन की शुरुआत कई गई जिसे मौर्य राजवंश के नाम से जाना गया।
मौर्य काल (322 से 182 ईसा पूर्व तक)
- भारत में मौर्य सम्राज्य का शासनकाल करीब 322 ईसापूर्व से 185 ईसा पूर्व तक रहा। यह सम्राज्य काफी बड़ा एवं राजनैतिक एवं सैन्य मामलों में भी काफी मजूबत, संगठित एवं ताकतवर सम्राज्य था।
- मौर्य राजवंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने करीब 322 ईसापूर्व से 298 ईसापूर्व तक चाणक्य की कूटनीति को अपनाकर पहले भारत गंगा के मौदानों में अपना सम्राज्य फैलाया फिर उसने पश्चमी उत्तर पर अपना कब्जा जमाया एवं फिर पंजाब के पूरे प्रांत को जीत लिया।
- इसके बाद सिकंदर के एक अधिकारी ने उसके राज्य में हमला कर दिया, जिसके बाद लंबे युद्द के बाद दोनों के बीच संधि समझौता हुआ, जिसमें कंधार, बालचिस्तान, काबुल राज्यों को मौर्य सम्राज्य के अधीन किए गए। इसके कुछ समय बाद सिंधु के प्रांतों पर ही मौर्य सम्राज्य ने अपना अधिकार जमा लिया और फिर चन्द्रगुप्त मौर्य ने नर्मदा नदी के उत्तर प्रांत पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।
- चन्द्रगुप्त के बाद बिंदुसार और बाद में महान अशोक ने मौर्य सम्राज्य का शासन संभाला, जिसने इस सम्राज्य का जमकर विकास किया , उसके शासनकाल में दक्षिण को छोड़कर भारतीय उपमहाद्धीप के करीब सभी राज्यों पर नियंत्रण था।
- वहीं बाद में कलिंग युद्ध के बाद अशोक महान ने बौद्ध धर्म अपना लिया। मौर्य सम्राज्य के अंतिम शासक ब्रहदरथ की पुष्यमित्रा शुंग के द्धारा हत्या कर दी गई और फिर भारत में ‘‘शुंग राजवंश’’ की स्थापना हुई।
शुंग राजवंश
मौर्य सम्राज्य के पतन के बाद शुंग राजवंश ने 187 ईसा पूर्व से करीब 75 ईसापूर्व तक भारत में करीब 112 साल तक शासन किया। शुंग राजवंश के दौरान भारतीय उपमहाद्धीप में मध्य गंगा की घाटी एवं चंबल नदी तक के प्रदेश शामिल थे, जबकि विदिशा, अयोध्या, एवं पाटलिपुत्र मुख्य नगर थे।
भारत में आक्रमण (185 ईसापूर्व तक 320 ईसा पूर्व तक)
इस काल में भारत में शक, कुषाण,पार्थियन, बक्ट्रियन आदि ने हमला किए। वहीं इसी दौरान न सिर्फ व्यापार के लिए मध्य एशिया का मार्ग खुला, बल्कि सोने के सिक्कों का चलन और साका युग की शुरुआत हुई।
डेक्कन और दक्षिण (65 ईसापूर्व से 250 ईसापूर्व तक)
इस काल में भारतीय उपमहाद्धीप के दक्षिण भाग पर चोल, पांडया, चेर आदि राजवंशों का शासन रहा और इसी समय महाराष्ट्र में स्थित दुनिया भर में अपना अनूठी कलाकृति और शिल्पकारी के लिए मशहूर अंजता और एलोरा की भव्य गुफाओं का भी निर्माण किया गया। इसके साथ ही इस दौरान भारत में ईसाई धर्म का आगमन हुआ।
गुप्त सम्राज्य (320 ईसवी से लेकर 520 ईसवी तक)
भारत में गुप्त सम्राज्य का काल काफी समृद्ध एवं उन्नत काल था। इस काल को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग कहा जाता है। इस दौरान उत्तरी भारत में शास्त्रीय युग की शुरुआत हुई थी। समुद्रगुप्त ने इस दौरान सम्राज्य का जमकर विस्तार किया, इसके साथ ही चन्द्रगुप्त द्धितीय ने शाक के खिलाफ युद्ध किया। गुप्त सम्राज्य पाटिलपुत्र से प्रयाग, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था। इस युग में ही कालिदास ने अपनी महान रचना शाकुंतलम की।
इसके साथ ही इस काल में गणित, खगोल विज्ञान, साहित्य, धर्म, दर्शन और कला, प्रौद्योगिकी का जमकर विकास हुआ। भारत में छोटे राज्यों का निर्माल काल (500 ईसवी से 606 ईसा पूर्व तक):
5वीं सदी में गुप्त सम्राज्य के बिखराव के बाद भारत में हूण, मौखरी, मैत्रक, पुष्यभूति एवं गौड़ राजवंशों की शक्तियां फैल गईं, वहीं इन छोटे-छोटे राजवंशों के आपस में युद्द करने से भारत में कई छोटे-छोटे राज्यों का निर्माण किया गया।
हर्षवर्धन (606 से 647 ईसा पूर्व तक)
- 7वीं सदी की शुरुआत में राजा हर्षबर्धन ने उत्तर भारत में तो अपना सम्राज्य का विस्तार किया। इसके साथ ही चीन के साथ अच्छे राजनायिक संबंध स्थापित कर लिए। उसके शासनकाल के दौरान ही भारत में प्रसिद्ध चीनी यात्री हेन त्सांग ने भारत की यात्रा की थी, वहीं बाणभट्ट हर्षवर्धन के दरबार के मुख्य कवि थे, जिन्हों राजा हर्षवर्धन की जीवनी ‘हर्षचरित’ की भी रचना की थी। बाद में हूणों के आक्रमण से हर्षबर्धन के राज्य कई छोटे-छोटे टुकड़ो में बंट गया था।
दक्षिण राजवंश 500 ईसापूर्व से 750 ईसापूर्व तक
इस काल में भारत में कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित रायचूर दोआब पर चालुक्यों ने शासन किया था। इसी काल के दौरान पल्लवों ने सातवाहनों के पतन के बाद दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली राज्य पल्लव सम्राज्य की स्थापना की थी।यही नहीं इसी काल में भारत में पंड्या सम्राज्य भी खूब फला-फूला एवं कई पार्शियन भी भारत दौरे पर आए थे।
चोल सम्राज्य 9वीं सदी से 13वीं सदी तक
संगम साहित्य से मिली जानकारी के मुताबिक इस काल के दौरान चोल सम्राज्य का विस्तार आधुनिक तिरुचि जिले से आंध्रप्रदेश तक हुआ था। इस दौरान चोलों द्धारा समुद्र नीति भी अपनाई गई थी।
उत्तरी सम्राज्य 750 ईसवी से 1206 ईसवी तक
इस दौरान उत्तर और दक्षिण भारत में कई ताकतवर और शक्तिशाली सम्राज्यों का उदय हुआ। इस दौरान भारत में न सिर्फ राष्ट्रकूट शासकों का बोलबाला रहा, बल्कि प्रतिहार सम्राज्य ने अवंति एवं पलस राजवंश के शासकों ने बंगाल पर अपना नियंत्रण स्थापित किया।
इसी दौरान राजपूत राजवंश की भी स्थापना की गई। इस काल में भारत के मध्यप्रदेश के खजुराहों के मंदिर, पुरी के मंदिर समेत कांचीपुरम के प्रसिद्ध मंदिरों का भी निर्माण किया गया। इसी दौरान तुर्कों ने भी भारत में अपना धावा बोला।
मध्यकालीन भारत का इतिहास (Medieval History)
करीब 712 ईसा पूर्व के आसपास मुस्लिम शासक मुहम्मद-इब्र-कासिम के नेतृत्व में मुस्लिमों ने ब्राह्मण राजा दाहिर को पराजित कर भारत में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और फिर कई सदियों तक भारत में मुस्लिम राजाओं ने राज किया।
मध्यकालीन भारत में भारतीय समाज में भी कई बदलाव हुए एवं कृषि का काफी विकास हुआ।
दिल्ली सल्तनत की स्थापना
- 1206 ईसवी से1562 ईसवी तक दिल्ली सल्तनत का काल रहा। इस लंबे समय के दौरान भारत में मुस्लिम राजाओं का शासन रहा।।
गुलाम वंश
- 1206 ईसवी में दिल्ली में कुतुबुद्धीन ऐबक द्धारा दिल्ली में गुलाम वंश की स्थापना की गई, गुलाम वंश ने 1290 ईसवी तक भारत में राज किया। इस अवधि में गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश, रजिया सुल्तान, गयासुद्दीन बलबन आदि ने शासन किया।
खिलजी वंश
- गुलाम वंश के शासकों के बाद दिल्ली सल्तनत पर 1290 ईसा पूर्व से करीब 1320 ईसा पूर्व तक खिलजी वंश का शासन रहा।
तुगलक वंश
- 1320 ईसवी से करीब1414 ईसवी तक भारत में तुगलक वंश ने राज किया। इस दौरान गयासुद्दीन, मुहम्मद बिन तुगलक और फिरोज शाह तुगलक ने शासन किया।
- यह काल मुख्य रुप से स्थापत्य एवं वास्तुकला के रुप जाना जाता है।
मुगल काल (1526 ईसवी से 1858 तक)
- मुगल सम्राट बाबर ने 1526 ईसवी में मुगल सम्राज्य की स्थापना की, जिसके बाद लंबे अरसे तक मुगल सम्राज्य ने भारत पर शासन किया।
- 16 वीं सदी तक मुगल वंश के शासकों ने अपने राजनैतिक कौशल, और योग्यता के चलते भारतीय उपमहाद्धीप के ज्यादातर हिस्सों में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था, इसके बाद 17वीं सदी के अंत तक इस वंश का धीमे-धीमे पतन होने लगा था, इसके बाद आजादी की पहली लड़ाई के दौरान मुगल साम्राज्य का पूरी तरह खात्मा हो गया था।
मुगल सम्राज्य के मुख्य शासक
- बाबर (1526 ईसवी से 1530 तक)
- हुमायूं (1530 ईसवी से 1556 ईसवी तक)
- शेरशाह सूरी (1486 ईसवी से 22 मई 1545 ईसवी तक)
- अकबर ( 1556 ईसवी से1605 ईसवी तक)
- जहांगीर (1605 ईसवी से 1627 ईसवी तक)
- शाहजहां (1627 ईसवी से1658 ईसवी तक)
- औरंगेजब (1658 ईसवी से 1707 ईसवी तक)
- बहादुर शाह जफर (1837 से 1858 तक)
- आधुनिक भारतीय इतिहास
- उपनिवेशी काल:
भारत में 16वीं सदी के आसपास फ्रांस, ब्रिटेन, पुर्तगाल, नीदरलैंड समेत तमाम यूरोपीय शक्तियों द्धारा भारत में अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिए गए थे।
मराठा सम्राज्य
17 वीं सदी में भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज ने भारत में मराठा सम्राज्य की स्थापना की थी, मराठा सम्राज्य हिन्दू, मुस्लिम शासन एवं सैन्य व्यवस्था का मिश्रित रुप था।
आधुनिक भारत का इतिहास (Modern History of India)
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी
18वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपना प्रभुत्व जमा लिया, और यहीं से भारत में ब्रिटिश राज यानि की अंग्रेजों के शासन की शुरुआत हुई थी। इस कंपनी ने भारत में कई सालों तक शासन किया। 1857 में भारत में आजादी की पहली लड़ाई के बाद इस कंपनी का शासन समाप्त हुआ।
यह काल भारतीयों के लिए बेहद संघर्षपूर्ण काल था, क्योंकि इस दौरान निर्मम ब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी दमनकारी नीतियों के तहत भारतीयों पर जमकर अत्याचार किया। इस कंपनी के शासनकाल के दौरान भारत पर कई गर्वनर जनरलों ने अपना शासन चलाया।
आजादी की पहली लड़ाई (First war of independence)
आजादी की पहली लड़ाई को “1857 की क्रांति” के नाम से भी जाना जाता है। यह लड़ाई अलग अलग सैन्य दलों और किसान आंदोलन के मोर्चों को मिलाकर बनाई गई थी।
गौरतलब है कि ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारत को अधीन करने के उपरान्त सबसे अधिक असंतोष किसानों और सैन्य दलों में ही था। किसानों और सैन्य दलों ने ही इस आंदोलन को खड़ा किया था। हालांकि बाद में कई सारे क्रांतिकारी इस आंदोलन में जुड़ते चले गए।
1857 की क्रांति की नींव 1853 में रखी गई थी। उस दौरान यह अफवाह फैला दी गई थी राइफल के कारतूस पर सुअर और गायों की चर्बी लगाई जाती है। गौरतलब है कि राइफल और कारतुस को चलाने से पहले उसे मूह से खोलना पड़ता था, जिस कारण यह हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के भारतीय सैनिकों को बुरा लगा।
1857 की क्रांति का यह सैन्य कारण था। वहीं दूसरा कारण जो इस क्रांति से जुड़ा है वह यह कि किसानों पर ब्रिटिश सरकार के लगानों का बोझ काफी ज्यादा बढ़ गया था और वे काफी समय से इस चिंगारी को दबा रहे थे।
इस क्रांति के प्रमुख चेहरे, मंगल पांडे, नाना साहेब, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे, वीर कुंवर सिंह, अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर, रानी लक्ष्मी बाई, लियाकत अली, गजाधर सिंह और खान बहादुर जैसे महत्वपूर्ण और वीर नेता थे।
सूरत अधिवेशन (Surat Split)
यह अधिवेशन कांग्रेस के दृष्टिकोण से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण अधिवेशन था। यह घटना कॉंग्रेस के इतिहास की सबसे अधिक दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है। कॉंग्रेस के ही सदस्य रहे एनी बेसेंट ने कहा था कि यह घटना कॉंग्रेस की सबसे अधिक अप्रिय घटनाओं में से एक है।
गौरतलब है कि 26 सितंबर 1907 को यह अधिवेशन ताप्ती नदी के किनारे पर रखा गया था। हर अधिवेशन की तरह ही इस अधिवेशन के लिए भी अध्यक्ष का चुनाव कराया गया, जहां से इस घटना क्रम की शुरुआत हुई। गौरतलब है कि स्वराज्य को पाने के लिए कराए जा रहे इस अधिवेशन के कारण कॉंग्रेस दो धड़ों में बंट गई।
कॉंग्रेस में निर्मित ये दो दल, गरम दल और नरम दल के नाम से काफी ज्यादा मशहूर हुए। इन दो दलों की सूरत के अधिवेशन के लिए अध्यक्ष चुनाव के दौरान मार पीट तक हो गई।
दरअसल गरम दल के उग्रवादियों ने सूरत अधिवेशन का अध्यक्ष लोकमान्य तिलक को बनाने की मांग की थी लेकिन इसके उलट उदारवादी दल ने डॉक्टर राम बिहारी घोष ने इस अधिवेशन का अध्यक्ष बना दिया।
बाद में यह उग्रवादियों और उदारवादीयों की तर्ज पर दो दल हो गए जिन्हे गरम दल एवं नरम दल का नाम दिया गया। गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल थे और नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले थे। बाद में 1916 के लखनऊ के अधिवेशन में इन दोनों दलों का विलय हुआ।
खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement)
यह घटना आधुनिक भारतीय इतिहास से काफी ज्यादा जुड़ी हुई नहीं है लेकिन इस घटना का महत्व है क्यूंकि यह एक आंदोलन था जिसका समर्थन महात्मा गांधी जी द्वारा किया जा रहा था।
यह आंदोलन तुर्की के खलीफा को उनकी पदवी दुबारा दिलाने के लिए किया गया था और यह आंदोलन भारत की आजादी के लिए काफी सहयोगी भी साबित हुआ।
महात्मा गांधी का इस आंदोलन को समर्थन देने के पीछे यह तथ्य था कि वे इस आंदोलन में मुस्लिमों की मदद करके भारतीय मुस्लिमों द्वारा आजादी की लड़ाई में सहयोग ले लेंगे।
यह एक प्रकार का धार्मिक राजनीतिक आंदोलन था जिसने गांधी जी के पूर्ण स्वराज्य के सपने को सीधे तौर पर नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से काफी सहायता पहुंचाई थी।
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)
भारत छोड़ो आंदोलन गांधी जी द्वारा किया गया आखिरी आंदोलन था। यह अंग्रेजों के खिलाफ भी किया गया आखिरी आंदोलन था क्यूंकि इस आंदोलन के उपरांत अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया था।
इस आंदोलन का एकमात्र उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना था, हालांकि ऐसा आंदोलन के दौरान तो नहीं हो पाया क्यूंकि अंग्रेजों ने यह आंदोलन दबा दिया था लेकिन इस आंदोलन के खत्म होने के बाद अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया था। इस आंदोलन का प्रमुख नारा “भारत छोड़ो” 1942 के कॉंग्रेस के बम्बई अधिवेशन के दौरान दिया गया था।
भारत का विभाजन (Partition of India)
भारत के विभाजन को अंग्रेजों की देन कहा जा सकता है। अंग्रेजों द्वारा ही “फुट डालो राज करो” की नीति अपनाई जाती थी और उन्होने भारत को छोड़ते समय भी यही किया।
उन्होने भारत को छोड़ दिया लेकिन भारत के टुकड़े भी कर दिए। महात्मा गांधी भारत के टुकड़े नहीं चाहते थे लेकिन उस समय तक भारत परिस्थितियों की समस्या में इस कदर फँस चुका था कि कुछ किया नहीं जा सकता था।
भारत के विभाजन के समर्थन वाले प्रमुख दलों में मुस्लिम लीग भी थी, जिसका नेतृत्व मोहम्मद अली जिन्ना कर रहे थे।
भारतीय संविधान निर्माण (Indian Constitution)
भारतीय संविधान निर्माण भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है। भारतीय संविधान का निर्माण भारत की सुचारू रूप से चलाने के लिए किया गया था। भारतीय संविधान को 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों में निर्मित किया गया था। 26 नवंबर को भारतीय संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और महात्मा गांधी
इसके बाद 20वीं सदी में महात्मा गांधी जी, सरदार भगत सिंह, जवाहर लाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चन्द्र बोस, एनी बेसेंट समेत कई महान स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों ने गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलन चलाए।
आजादी और विभाजन
अंग्रेजों की फूट डालो, राज करो नीति के तहत हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच धार्मिक तनाव की वजह से आपसी मतभेद बढ़ गया। जिसके चलते वाइसराय लॉर्ड वेवेल ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया।
लेकिन अंत में भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो गया और 15 अगस्त 1947 में हमारे देश के महान क्रांतिकारियों के कठोर संघर्षों के बाद हमारे भारत देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली
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