भारतीय इतिहास और प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत || History of India

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भारत का इतिहास – History of India In Hindi

नमस्कार दोस्तों आज मैं ये सभी भारत का इतिहास भारतीय इतिहास (Bharat Ka Itihas) केबारे में जो पिछली किसी न किसी सरकारी Exam में प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत History Of India पूछे जा चुके है और आगे आने वाली एवं अन्य सभी प्रतियोगिता परीक्षाओ में इस प्रश्न के आने की पूरी-पूरी संभावना है। आप आसानी से 4-5 अंक प्राप्त कर सकते हैं

उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला यह उपमहाद्वीप भारतवर्ष के नाम से ज्ञात है, जिसे महाकाव्य तथा पुराणों में ‘भारतवर्ष’ अर्थात् ‘भरत का देश’ तथा यहाँ के निवासियों की भारती अर्थात् भरत की संतान कहा गया है। यूनानियों ने भारत को इंडिया तथा मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारों ने हिन्द अथवा हिन्दुस्तान के नाम से संबोधित किया है। भारतीय इतिहास को अध्ययन की सुविधा के लिए तीन भागों में बाँटा गया है

1, प्राचीन भारत,  2, मध्यकालीन, 3, भारत एवं आधुनिक भारत ।

भारतीय इतिहास और प्राचीन भारत

1. प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के विषय में जानकारी मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है—(1) धर्मग्रंथ (2) ऐतिहासिक ग्रंथ (3) विदेशियों का विवरण (4) पुरातत्त्व संबंधी साक्ष्य

धर्मग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से मिलनेवाली महत्त्वपूर्ण जानकारी > भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ वेद है, जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है। वेद चार हैं -ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद ।

भारतीय इतिहास और प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत ||    History of India
भारतीय इतिहास

(1) ऋग्वेद

> ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है। इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त (वालखिल्य पाठ के 11 सूक्तों सहित) एवं 10,462 ऋचाएँ है। इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं। इस वेद से आर्य के राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।

> विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है। इसके 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख है।

> इसके आठवें मंडल की हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है।

> चातुवर्ण्य समाज की कल्पना का आदि स्त्रोत ॠग्वेद के 10वें मंडल में वर्णित पुरुषसूक्त है, जिसके अनुसार चार वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र) आदि पुरुष ब्रह्मा के क्रमशः मुख, भुजाओं, जंघाओं और चरणों से उत्पन्न हुए ।

नोट: धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, व्यवसायों, दायित्वों, कर्त्तव्यों तथा विशेषाधिकारों में स्पष्ट विभेद करता है।

> वामनावतार के तीन पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्त्रोत ॠग्वेद है।

> ऋग्वेद में इन्द्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओं की रचना की गयी है।

नोट: प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राह्मण का स्थान है।

(2)  यजुर्वेद

> सस्वर पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद • कहलाता है। इसके पाठकर्त्ता को अध्वर्यु कहते हैं ।

> यह एक ऐसा वेद हैं जो गद्य एवं पद्य दोनों में है।

(3) सामवेद

> यह गायी जा सकने वाली ऋचाओं का संकलन है। इसके पाठकर्त्ता को उद्रातृ कहते हैं ।

> इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है

(4) अथर्ववेद

> अथर्वा ऋषि द्वारा रचित इस वेद में रोग निवारण, तंत्र-मंत्र, जादू टोना, शाप वशीकरण, आर्शीवाद, स्तुति, प्रायश्चित, औषधि, अनुसंधान, विवाह, प्रेम, राजकर्म, मातृभूमि महात्मय आदि विविध विषयों से संबद्ध मंत्र तथा सामान्य मनुष्यों के विचारों, विश्वासों, अंधविश्वासों इत्यादि का वर्णन है।

> इसमें सभा एवं समीति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।

नोट: सबसे प्राचीन वेद ऋग्वेद एवं सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।

→ वेदों को भली-भाँति समझने के लिए छः वेदागों की रचना हुई । ये हैं — शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरूक्त तथा छंद ।

> भारतीय ऐतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध विवरण पुराणों में मिलता है। इसके रचयिता लोमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं। इनकी संख्या 18 है, जिनमें से केवल पाँच— मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवत में ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है।

पुराण  संबंधित वंश  
विष्णु पुराणमौर्य वंश
मत्स्य पुराणआन्ध्र सातवाहन
वायु पुराणगुप्त वंश

नोट: पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक है।

  • अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखे गये हैं। स्त्रियाँ तथा शूद्र जिन्हें वेद पढ़ने की अनुमति नहीं थी वे भी पुराण सुन सकते थे। पुराणों का पाठ पुजारी मंदिरों में किया करते थे।
  • स्मृतिग्रंथों में सबसे प्राचीन एवं प्रामाणिक मनुस्मृति मानी जाती है। यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है। नारद स्मृति गुप्त युग के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
  • जातक में बुद्ध की पूर्वजन्म की कहानी वर्णित है। हीनयान का प्रमुख ग्रंथ ‘कथावस्तु’ है जिसमें महात्मा बुद्ध का जीवन चरित अनेक कथानकों के साथ वर्णित है।
  • जैन साहित्य को आगम् कहा जाता है। जैनधर्म का प्रारंभिक इतिहास ‘कल्पसूत्र’ से ज्ञात होता है। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके संबंधों का विवरण मिलता है।
  • अर्थशास्त्र के लेखक चाणक्य (कौटिल्य या विष्णुगुप्त ) हैं । यह 15 अधिकरणों एवं 180 प्रकरणों में विभाजित है। इससे मौर्य कालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।
  • संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया। कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगिणी है जिसका संबंध कश्मीर के – इतिहास से है।
  • अरबों की सिंध-विजय का वृत्तांत चचनामा ( लेखक – अली अहमद) में सुरक्षित है।
  • ‘अष्टाध्यायी’ (संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक) के लेखक पाणिनी हैं। इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक अवस्था की जानकारी प्राप्त होती है।
  • कत्यायन की गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ हैं फिर भी इसमें भारत पर होने वाले यवन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।
  • पंतजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे, इनके महाभाष्य से शुंगों के इतिहास का पता चलता है।

A. यूनानी – रोमन लेखक

  1. टेसियस : यह ईरान का राजवैद्य था। भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।
  2. हेरोडोटस : इसे ‘इतिहास का पिता’ कहा जाता है। इसने अपनी पुस्तक हिस्टोरिका में 5वीं शताब्दी ईसापूर्व के भारत-फारस के संबंध का वर्णन किया है। परन्तु इसका विवरण भी अनुश्रुतियों एवं अफवाहों पर आधारित है।
  3. सिकन्दर के साथ आनेवाले लेखकों में निर्याकस, आनेसिक्रटस तथा आस्टिोबुलस के विवरण अधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय हैं।
  4. मेगास्थनीज : यह सेल्युकस निकेटर का राजदूत था, जो चन्द्रगुप्त मौर्य के राजदरबार में आया था। इसने अपनी पुस्तक इण्डिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा है।
  5. डाइमेकस: यह सीरियन नरेश आन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के राजदरबार में आया था। इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है।
  6. डायोनिसियस : यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था, जो अशोक के राजदरबार में आया था।
  7. टॉलमी : इसने दूसरी शताब्दी में ‘भारत का भूगोल’ नामक पुस्तक लिखी । (viii) प्लिनी : इसने प्रथम शताब्दी में ‘नेचुरल हिस्ट्री’ नामक पुस्तक लिखी। इसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि के बारे में विवरण मिलता है।
  8. पेरीप्लस ऑफ द इरिश्रयन-सी : इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है। यह लेखक करीब 80 ई० में हिन्द महासागर की यात्रा पर आया था। इसने उस समय के भारत के बन्दरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।

B. चीनी लेखक

फाहियान : यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था। इसने अपने विवरण में मध्यप्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्यप्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है।

(ii) संयुगन यह 518 ई० में भारत आया। इसने अपने तीन वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियाँ एकत्रित कीं ।

(iii) हुएनसाँग : यह हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था । हुएनसांग 629 ई० में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग एक वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपिशा पहुँचा । भारत में 15 वर्षों तक ठहरकर 645 ई० में चीन लौट गया । वह बिहार में नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्र कर ले जाने के लिए आया था। इसका भ्रमण वृत्तांत सियू की नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिन्ध का राजा शूद्र था ।

नोट: हुएनसाँग के अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे ।

(iv) इत्सिंग : यह 7वीं शताब्दी के अन्त में भारत आया। इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय तथा अपने समय के भारत का वर्णन किया है।

C. अरबी लेखक

अलबरूनी: यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था । अरबी में लिखी गई उसकी कृति ‘किताब-उल-हिन्द या तहकीक-ए-हिन्द ( भारत की खोज), आज भी इतिहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इसमें राजपूत कालीन समाज, धर्म, रीति-रिवाज, राजनीति आदि पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है।

  • तारानाथ : यह एक तिब्बती लेखक था। इसने ‘कंग्युर’ तथा ‘तंग्युर’ नामक ग्रंथ की रचना की। इनसे भारतीय इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है।
  • मार्कोपोलो : यह 13वीं शताब्दी के अन्त में पाण्ड्य देश की यात्रा पर आया था। इसका  विवरण पाण्ड्य इतिहास के अध्ययन के लिए उपयोगी है।

D. अन्य लेखक

पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलने वाली जानकारी

  • 1400 ई० पू० के अभिलेख ‘बोगाज कोई (एशिया माइनर) से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इन्द्र और नासत्य (अश्विनी कुमार) के नाम मिलते हैं।
  • मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत ‘होलियोडोरस बेसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तम्भ लेख से प्राप्त होता है।
  • सर्वप्रथम ‘भारत वर्ष’ का जिक्र हाथी हाथी गुम्फा अभिलेख मे है
  • सर्वप्रथम दुर्भिक्ष का जानकारी देने वाला अभिलेख सोहगौरा अभिलेख है।
  • सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख (शासक भानू गुप्त ) से प्राप्त होती हैं।
  • सर्व प्रथम भारत पर होने वाले हूण आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ से प्राप्त होती है
  • रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है।

महत्वपूर्ण अभिलेख

अभिलेखशासक
हाथी हाथी गुम्फा अभिलेख (तिथि रहित अभिलेख)कलिंग राज खाखेड  
जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेखरुद्रदामन
नासिक अभिलेखगौतमी बलश्री
प्रयाग स्तम्भ लेखसमुद्रगुप्त
ऐहोल अभिलेखपुलकेशिन-I।
मन्दसौर अभिलेखमालवा नरेश यशोधर्मन
ग्वालियर अभिलेखप्रतिहार नरेश भोज
भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेखस्कन्दगुप्त
देवपाड़ा अभिलेखबंगाल शासक विजयसेन

नोट: अभिलेखों का अध्ययन इपीग्राफी कहलाता है।

  • कश्मीरी नवपाषाणिक पुरास्थल होम से गर्तावास (गड्ढा घर का साक्ष्य मिला है। इनमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ होती थी ।
  • प्राचीनतम सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता है, इसी को साहित्य में काषार्पण कहा गया है।
  • सर्वप्रथम सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य यवन शासकों ने किया।
  • समुद्रगुप्त की वीणा बजाती हुई मुद्रा वाले सिक्के से उसके संगीत प्रेमी होने का प्रमाण मिलता है
  •  अरिकमेडू (पुदुचेरी के निकट) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए हैं।

(2) प्रागैतिहासिक काल

  • जिस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण उद्धृत नहीं किया, उसे प्रागैतिहासिक काल’ कहते हैं। मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसका विवरण लिखित रूप में उपलब्ध है।
  • ‘आद्य ऐतिहासिक काल’ उस काल को कहते हैं, जिस काल में लेखनकला के प्रचलन के बाद उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं।
  • ‘ज्ञानी मानव’ (होमो सैपियस) का प्रवेश इस धरती पर आज से लगभग तीस या चालीस हजार वर्ष पूर्व हुआ।
  • आग का आविष्कार पुरापाषाणकाल में एवं पहिए का नव पाषाणकाल में हुआ।
  • मनुष्य में स्थायी निवास की प्रवृत्ति नव पाषाणकाल में हुई तथा उसने सबसे पहले कुत्ता को पालतू बनाया।
  • ‘पूर्व – पाषाण युग’ के मानव की जीविका का मुख्य आधार था— शिकार।
  • मनुष्य ने सर्वप्रथम ताँबा धातु का प्रयोग किया तथा उसके द्वारा बनाया जानेवाला प्रथम आजार कुल्हाड़ी (प्राप्ति स्थल अतिरम्यक्कम) था
  •  कृषि का आविष्कार नव पाषाणकाल में हुआ। प्रागैतिहासिक अन्न उत्पादक स्थल मेहरगढ़ पश्चिमी ब्लुचिस्तान में अवस्थित है। कृषि के लिए अपनाई गई सबसे प्राचीन फसल एवं जी थी।
  • पल्लावरम् नामक स्थान पर प्रथम भारतीय पुरापाषण कलाकृति की खोज हुई थी।
  • भारत में पूर्व प्रस्तर युग के अधिकांश औजार स्फटिक (पत्थर) के बने थे ?
  • भारत का सबसे प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो था, सिंधी भाषा में जिसका अर्थ है मृतकों का टीला ! प्रमाण मिलता है

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